विचारों को कैसे नियंत्रित करें

हमारे मन मे प्रतिदिन हजारों विचार आते हैं जिनमे से अधिकतर व्यर्थ हैं और हमारे जीवन मे इनकी कोई उपयोगिता नही होती। लेकिन इन विचारों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता। न चाहते हुए भी ये हमारे मन मे चलते रहते हैं। ये अनचाहे विचार हमारी एकाग्रता में बाधा डालते हैं जिस कारण हम किसी भी काम में हमारे दिमाग की पूरी शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर पाते।

अब सवाल यह है कि इन अनचाहे विचारों से हम कैसे मुक्त हो सकते हैं। इसके लिए एक सरल विधि है जिससे हम बहुत अच्छे परिणाम पा सकते हैं। तो आइये बताते हैं आपको उस सरल विधि के बारे में |

अनचाहे विचारों को रोकने की एक सरल विधि :

सबसे पहला काम तो यह कीजिये कि विचारों की जो धाराएं हमारे मन में दौड़ती हैं कभी उनके महज निरीक्षक हो जाने की कोशिश करें। यानि अपने ही विचारों को एक प्रकार से चेक करना | जैसे नदी के किनारे बैठ कर नदी की बहती हुई धार को देखना । सिर्फ नदी के किनारे बैठना और देखते रहना, नदी की धार से कोई छेडछाड ना करना । बिल्कुल वैसे ही अपने मन में विचार की बहती हुई नदी को, चुपचाप तट पर खड़े होकर देखना है । जैसे हम किनारे पर बैठे हैं और विचारों को देख रहे हैं । विचार को स्वतंत्र छोड़ दें, विचार को भागने दें, बहने दें और दौड़ने दें ।

आप बस चुप बैठ कर उसे देखें । आप कुछ भी न करें, कोई रूकावट ना डालें, कोई दमन न करें। कोई विचार आता हो तो ना रोकें और ना आता हो तो लाने की कोशिश भी ना करें । आप मात्र साक्षी बन जाओ, निरीक्षक बन जाओ।

उस समय हमें अनुभव होता है कि विचार अलग है और मैं अलग हूं क्योंकि जो विचारों को देख रहा है वह विचारों से अलग होगा और जब यह होता है तो अद्भुत शांति का अनुभव होता है क्योंकि उस वक्त कोई चिंता आपकी नहीं है। आप चिंताओं के बीच में हो सकते हैं मगर चिंता आपकी नहीं है, आप समस्याओं के बीच में हो सकते हैं मगर समस्या आपकी नहीं है । आप विचारों से घिरे हो सकते हैं मगर विचार आप नहीं हो और अगर ये समझ में आ जाये कि विचार मैं नहीं हूँ तो विचार कमजोर होने लगते हैं ।

उदाहरण :-

आप प्रतिदिन अपने काम पर जाते होंगे | हर कोई कुछ न कुछ काम करता है | वहां आप अपने सहकर्मियों या दोस्तों से बात करते हैं, उनके बारे में कुछ सोचते हैं और विचारों का आदान प्रदान करते हैं | किसी के बारे में अच्छा सोचते हैं किसी के बारे में बुरा | लेकिन आप उन विचारों के प्रति सजग नहीं हैं, जागरूक नहीं हैं | विचार लगातार आ रहे हैं और जा रहे हैं | लेकिन अगर आपको अचानक कहीं से पता लगता है कि आपके किसी सीनियर कर्मचारी में एक अनोखी योग्यता है कि वह चेहरा देख कर विचार पढ़ सकता है | इसके बाद आप जब भी अपने दफ्तर जाओगे तो पाओगे कि आपके विचार रुक गये हैं | क्योंकि आप इस बात से परिचित हो चुके हो कि आपके विचार पढ़े जा रहे हैं | जिस कारण आप विचारों के प्रति जागरूक हो जाते हो और विचारों की गति कम हो जाएगी और धीरे धीरे विचार बंद हो जायेंगे | किसी भी बुरे विचार के आने की दर कम हो जाएगी | इसलिए विचारों से मुक्ति के लिए सजगता (awareness) जरुरी है |

विचारों की शक्ति ही इसमें है कि हम समझते हैं कि ये विचार हमारे हैं । कोई विचार आपका नहीं है । सब विचार अन्य है और आपसे अलग हैं। हम विचारों के प्रति सुप्तावस्था (Hybernation) में रहते हैं इसलिए हम उनको नियंत्रित नहीं कर सकते। आपको विचारों के प्रति सजग रहना होगा, हमेशा जागरूक रहना होगा। कोई भी विचार अनदेखा न रहे। आपके हर एक छोटे से छोटे विचार को लेकर आप सजग होने चाहिए | हमारे अनचाहे विचारों से जूझने का एक कारण यह नही है कि हम विचारों के साथ बंधे हुए हैं | आपको कभी ख्याल नहीं आता कि हम विचारों से अलग हैं | जब हमें गुस्सा आता है तो कहते हैं क्रोधी हो गया हूँ , जब आपके जीवन में कोई सुख आता है तो आप कहते हो कि मै सुखी हो गया हूँ , या दुख आता है तो आप कहते हो कि मै दुखी हो गया हूँ | बजाए इसके आपको कहना चाहिए मेरे सामने गुस्सा आया या सुख आया या दुःख आया | एसा करने से आप खुद को सुख, दुःख या क्रोध से अलग पाओगे | मन के आकाश पर चल रहा विचार आपसे उतना ही दूर है जितना कि बाहरी आकाश आपसे दूर है |

एक पुरानी कहानी है कि एक बार एक राजा था जिसका बहुत बड़ा साम्राज्य था | वह राजा बहुत सोचवान था | एक दिन बैठे बैठे अचानक उसके मन में एक विचार आया और उसने अपने वजीर और विद्वानों को बुलाया | उसने कहा कि मेरे लिए एक ताबीज बनवाओ और उसमें कुछ ऐसा लिखो जो मेरे सुख और दुःख दोनों में काम आये | सभी सोच में पड़ गए कि ऐसा क्या लिखा जाए जो सुख और दुःख दोनों में लाभप्रद हो | उन्होंने बहुत खोज की और वे एक बुजुर्ग के पास पहुंचे | उन्होने सारी कहानी बताई और मार्गदर्शन माँगा | उस बुजुर्ग ने एक पर्ची पर कुछ लिखा और उस ताबीज में डाल दिया | राजा ने ताबीज लिया और गले में पहन लिया | एक बार उनका अपने पड़ोसी राज्य के साथ युद्ध हो गया | उस युद्ध में राजा बुरी तरह पराजित हो गया और अपनी जान बचा कर भाग निकला | राजा एक जंगल में जाकर छिप गया | वह इस हार से बहुत दुखी था | तभी उसको उस ताबीज का ख्याल आया जो उस बुजुर्ग ने उसे दिया था, उसने उस ताबीज को खोला और उसमें से वो पर्ची निकाल कर पढ़ी | उसे पढ़ कर वह सहज हो गया और अपना सारा दुःख भूल गया | तो ऐसा क्या था जिसे पढ़ कर राजा इतना सहज हो गया कि उसका सारा दुख समाप्त हो गया |

उस पर्ची में एक सामान्य सी बात लिखी थी “ यह भी गुजर जायेगा” (This too will pass). वह राजा इस बात से बहुत प्रभावित हुआ और उसने एक बार फिर अपनी सेना को संगठित किया और पड़ोसी राज्य पर आक्रमण कर दिया | इस बार राजा की जीत हुई | राजा अत्यंत प्रसन्न था और अहंकार उसे घेरने लगा था | तभी उसको ताबीज का ख्याल आया और फिर उसने पर्ची को निकाल कर पढ़ा – “यह भी गुजर जायेगा “ और राजा फिर सहज और अहंकार से मुक्त हो गया | इसी प्रकार विचार और सुख-दुःख जीवन में आते है और चले जाते हैं | हमें उनसे बंध नहीं जाना है बल्कि देखते रहना है | जो विचार आया है वो चला भी जायेगा अगर हम उसमें उलझ नहीं जायेंगे तो | अगर हम उसमें दिलचस्पी लेंगे तो वह और गहन हो जायेगा और हमें सहज और स्थिर नहीं होने देगा | ध्यान (Meditation) का यही उद्देश्य है कि हम कुछ समय विचारों से मुक्त (Thoughtlessness) हो जाएँ |

इस स्थिति में बहुत शांति और संतुष्टि का अनुभव होता है जो यह हमारे जीवन के मुख्य उद्देश्यों में से एक है |

जब आप अपने ही दर्शक बनोगे तो आपके अंदर दो तत्व हो जाएंगे एक जो करने वाला यानि कर्ता है और एक देखने वाला यानि दृष्टा है। जब हम बिल्कुल सजग हो जाते हैं तो विचार बंद हो जाते हैं और जब विचार बंद हो जाते हैं तब हम देख पाते हैं कि कर्ता अलग है और दृष्टा अलग है। हमे दृष्टा बनना है विचारक नहीं। उठते-बैठते, सोते-जागते अपने भीतर चलने वाली विचारों की धारा को देखें। विचार के साथ एक मत हो, विचार को अलग चलने दें और आप अलग चलें। आपके अंदर दो समांतर धाराएँ उत्पन्न होनी चाहिए – एक विचार की और एक दर्शन की। जब ऐसा होता है तो उससे ही विवेक की उत्पत्ति होती है। तो ऐसा करने से हम अनचाहे विचारों पर रोक लगा सकते हैं और जीवन को सरल बना सकते हैं।

इट वर्क्स रियली !

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