My journey from inside to outside

“मैं” के अंदर से “बाहर” तक का सफ़र…..

#learn #letgo
अब मेरी असली कशमकश ये थी कि मुझे बिना सामने जैसा हुए हर एक परिस्थिति को “Let Go” करना सीखना था।

ज़िंदगी में “जाने देना”

कस्तूरी मृग सा दौड़ता मन,
सुगंध की खोज में भटकता हरदम,
अंदर छुपा है वो अनमोल खज़ाना,
पर नज़र न आए, बस यूँ ही ठोकर खाना।

सड़ा हुआ कूड़ा, विचारों का बोझ,
मन में भरा है, बुराई का रोष,
जहान को दोषी ठहराते हैं लोग,
अंदर की गंदगी, न देखें संजोग।

बस यूँ ही…
बहुत धूमिल सी अब मुझमें मैं रह गयी हूँ…
शून्य सी जैसे अम्बर में कहीं खो गयी हूँ…
यकीन हो चला है यही शून्य जीवन है…
ना कभी कुछ मेरा था ना कुछ आज मेरा है…
ना कोई गुमान बाक़ी है ना कोई मान बाक़ी है।
अनंत तक जाने में… खो जाने में…
“मैं” के अंदर से बाहर तक का सफ़र…

ख़ुशी तो हर वो छोटी सी बात में है जिसे हम अपने दिल से करते हैं…
पर आजकल ये काम बहुत कम लोग करते हैं…
जो इन छोटी छोटी खुशियो से वंचित रह जाते हैं…
वे क्या जानें कितना सकून है हर एक लम्हे में।

दिल से किसी को धन्यवाद ही करके देखें…
पर दिल से… सच माने दिन संवर जाएगा।

भीड़ को छोड़ एक बार… ख़ुद के लिए फ़ैसला ले अगर…
मुश्किल वक्त में भी, ख़ूबसूरत पलों को जी सके अगर…
और थोड़ा-सा जज़्बा हो अपने फ़ैसले को जीने का…
तो फिर जीत और हार तो बस मन की माया है…

कभी कभी आप सही है पर शायद वक्त ग़लत
कभी वक्त ग़लत और आप सही
पर वक्त की ही हमेशा जीत होती है (ऐसा मैंने अनुभव किया है)
सही और ग़लत बस वक्त के मोहरे होते है…

ज़िन्दगी शायद ऐसी ही है… जब तक हम समझते है वो बदल जाती है, और बदलती ही जाती है जब तक हम समझना छोड़ ना दे…

ज़िंदगी से बड़ी कोई सज़ा ही नहीं,
और क्या ज़ुर्म है पता ही नही।
इतने हिस्सों में बंट गयी हूँ मैं, मेरे में कुछ मेरा बचा ही नही।
ए ज़िंदगी मौत तेरी मंजिल है, दूसरा कोई रास्ता ही नही।
पर लेकिन जब काटनी ही है ये ज़िंदगी,
तो थोड़ा सा विश्वास रख कर ख़ुद पर, थोड़ी सी मेहर और शक्ति मांग के उस रब से,
कि किसी तरह अच्छे से कट जाये ये ज़िंदगी, ये ही कोशिश है अब मेरी।

शब्दों के दायरे परिधि तय करते है…
निश्छल मन तो इन दायरों से परे होता है…
निश्चल मन पर कभी संदेह ना करना…
तुमने कई बार जाने अनजाने में रौंद डाला होगा इस मन को…
शब्दों से अपने,
वही मन डरा सहमा दूर खड़ा रह कर… इन्सानी फ़िदरत पर सवाल करता है।

जो मेरा है वो मेरे तक ही रहने दो…
ये भ्रम था मेरा के कोई तकलीफ़ बाँट सकता है…
आप भले ही किसी की तकलीफ़ में उसका हौसला बन जाओ…
पर वो इंतज़ार करेगा… जब ज़ख्म भर जायेगा, जब वो दौर गुज़र जाएगा… तब सब आयेंगे…

रोज़ सुबह एक नयी कहानी, कभी खूबसूरत सी सुबह, कभी बिना सूरत सी अनजानी…
बिना सूरत की सुबह अहसास दिलाती है की किरदार बनावटी है, रंगो से भर कर भी खूबसूरत नहीं बन पायी है…
क्योकि हर रंग तो सिर्फ़ सादगी के कोरे कागज पर चढ़ता है…
पहले से ही जो रंगा पारा हो, उसपर हर रंग चढ़ते ही अपना अस्तित्व खो बैठता है…

अनजाने में भी… किसी के दर्द में दवा बन… दुआ बन जाना…
दुआओं में बहुत ताक़त है जो पसंद ना भी करे उसे भी दुआ देकर विदा करना…
बस इतना ख्याल और रखना… “शब्द” सोच पर…” “तलवार ⚔️” कलम 🔏” पर भारी है…
आँसू या ख़ुशी क्या दोगे किसी को…
अब तुम्हारी बारी है…

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ज़िन्दगी एक छन में, एक पल में खत्म हो जाती है…
फिर भी ये सोचना के रोज़ ये शाम आएगी… या नहीं आयेंगी…
ए दिल मान ले अब तो ये बात…
उसे गले लगा लो ये समझ कर के शायद ये आखरी बार हो…

तय तो हमें करना है… हमें ख़ुद को कितना हँसाना है और रुलाना है….
वक्त कम है मान कर याद कर लो एक बार…
अपने जीवन के हर उस गुजरे लम्हों को…
जब किसी की ख़ुशी से तुम्हें सकून मिला हो,
कितनो के आँसू को तुमने हँसी में बदला था…
और नहीं कर पाए अभी तक… तो अब कर लो क्योके जिंदगी बता कर नहीं खत्म होती…
ये सोचना के कल ही तो नहीं मर जाएँगे वो जिन्हें आप ख़ुशी देना चाहते है…
ये सिर्फ़ आपके मन का वहम है।

स्तब्ध है मन चेहरो के नक़ाब से…
छल का वजूद संक्रमण(Virus) के तरह बढ़ता ही जा रहा है…
निश्चल मन बहरूपिया बना डगमगा रहा है…
कुछ तो रहने दो अपने अंदर अस्तित्व के नाम पर…
कहीं खो ना दो आत्मनों को उन छनिक लोगो के नाम पर।
झूठ के जाल में उलझा हुआ सा, हर शख़्स परेशान है।
सच दूर खड़ा, सोचता रहा… कलयुग की शायद यही पहचान है!

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