The way to live life

वक्त से रूबरू जब हुए हम, जीने का तरीका सीख गए हम।

वक्त से रूबरू जब हुए हम, जीने का तरीका सीख गए हम…
बिती बातों पर अब सवाल नहीं करती, वक्त किमती है बहुत , अब मैं इसे बर्बाद नहीं करती…
वक्त जो कहता है, वही मान जाती हूँ अब ज़िद्द करने से कतराती हूँ…
सबकी नज़रो में बेहतर होने के लिए, लड़ाइयो में वक्त बर्बाद नहीं करती।
ऐ वक्त, अब तुमसे भी कोई सवाल नहीं करती।

डर है पर… खो ना दूं ख़ुद को, वो बचपना…जो साथ जी लेती थी।
तुम ही तो थे जिससे थोड़ा ज़िद्द कर लेती थी
गैरों से कहां कोई ख़फ़ा होता है…
ख़फ़ा भी बस अपनो में जिया करता है
ये समझाना बड़ा मुश्किल है मगर …
ये सब वक्त-वक्त की बात है।
अब बेवक्त कोई फ़रियाद नहीं करती,
वक्त क़ीमती है बड़ा इसे बर्वाद नहीं करती।

ख़ुद से कभी कभी ऐसे भी मिलना पसंद है मुझे,
के ख़ुद को बिना सवालों के बिना जवाबों के देखते रहूँ…… ए ज़िन्दगी…
जिंदगी में क्या और कौन जरूरी है ये कुछ दिन बाहर रह कर समझ आ जाता है….
नहीं तो, अपने ऐब अपनी कमियों को सोचने का वक्त कहां मिल पाता है।
भागती जिंदगी में , ज़रा ठहर जाओ तो सब नज़र आता है…….
“मैं” अब “मैं” नहीं रह पा रही हूँ क्यों,
क्यों बात बात पर आक्रोश भर जाता है, ज़रा ठहर जाऊँ तो सब नज़र आता है…..
शहर के चकाचौंध से बच कर, अपने आप से अब मिलने निकल जाओ कही दूर,
फिर ये वक्त बतलायेगा, ज़रा ठहर ज़ाओ तो सब नज़र आता है।

कुछ लोगों को जिंदगी के सबसे खूबसूरत पल में जीने का मौका मिले तो उसे जी लेते है ….
पर जो लोग बार बार इस पल को ठुकराते है जिंदगी उनसे उन पलो को छीन लेती है…

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आख़िर ज़िन्दगी का भी अपना गुरूर है……
“अभिमान” कहता है, बहुत अकड़ कर किसी की जरुरत नहीं।
लेकिन मेरा अनुभव मुझे अहसास करवाता है, इंसान क्या, धूल की भी जरूरत पड़ेगी।

जब हंसी ज़ोर से तब दुनिया बोली, इसका पेट भरा है, और जब रोई फूट फूट कर तो बोली नाटक है नखरा करती है। जब गुमसुम रह गयी तो लगाई तोमत घमंड की, कभी नहीं यह दुनिया समझी कि इसके अंदर कितना दर्द भरा है। दोस्त मुश्किल है यहाँ… किसी को अपनी पीड़ा समझाना, दर्द उठे तो, सूने पथ पर पाँव बढ़ाना और चलते जाना…

थोड़ा कर लो ख़ुद से बात …. कभी कभी हम अपने ग़लत फ़ैसले , किसी के साथ किया हुआ ग़लत व्यवहार, अनचाहे ही किसी की भावनाओ को पहुँचाई हुई ठेस, और सबसे महत्वपूर्ण  यह है कि अपनी ही इन ग़लतियों को सुधारने का प्रयास।

सही और गलत शायद कुछ नहीं  है पर हम जानते तो हैं, क्या हमें ख़ुद को और दूसरों को अच्छा या बुरा लगेगा। तो फिर हमारे किरदार में ये कमियाँ अगर समय के साथ साथ साफ़ ना की गई तो ये दीमक की तरह हमे अंदर तक खोखला कर देंगी।

लेकिन फिर भी…. जो निकाल रहे हैं हर वक्त मुझमें, कमियां हज़ार। काश कभी निभा कर देखें, वो मेरा किरदार।
लोग तोल देते हैं चंद बातों पर किरदार, लेकिन बात जब उनके अपने किरदार की हो तो उन्हें तराज़ू नहीं मिलता।

तो उठो जागो और आगे बढ़ो सारे विश्व में अपने विचारों संस्कारों ज्ञान और कौशल से सबके मनों में सुख और प्रसन्नता के भाव जागृत करो।

यदि जीवन सरल है तभी सरस है।