Poetry

तुम क्या मिटाना चाहते हो ?

तुम क्या मिटाना चाहते हो ? एक सवाल है तुम लोगो से ये बताओ तुम क्या मिटाना चाहते हो? हर खिलते हुए फूल को यूँ मसल देना ठीक है क्या? किसी के बेटे किसी के भाई को छीन लेना ठीक है क्या? क्यों किसी के सपनों को यूँ दफनाना चाहते हो? ये तो बताओ आखिर

तुम क्या मिटाना चाहते हो ? Read More »

तो क्या हुआ !

तो क्या हुआ !एक बार फिर से… दिल ही तो “दुखा” है | तो क्या हुआचाहे अब कोई अपना ही रूठा है | तो क्या हुआरती भर हैं खुशियाँ और पहाड़ जैसे हैं ग़म | तो क्या हुआआगे तो मुझे चलना ही है |तो क्या हुआ अब ये कदम नहीं बढ़तेतो क्या हुआ |अब ये

तो क्या हुआ ! Read More »

Thank You My Dear

Thank You, Thank You So much To came into my Life… You came and You did well… I needed you… You have made me happy… Extremely happy…Thank You… Thank you for being my best friend… I may be hundreds of miles away from you… But you’re still only the first thing on my mind… Dear

Thank You My Dear Read More »

डोर है ज़िन्दगी… खींचा-तानी तो चलती रहेंगी….

यहाँ हकीकत का तेज़ मांझा है तो…. ख्वाहिशों की उड़ान भरने वाली पतंग भी | डोर जैसी है ये ज़िन्दगी… तो खींचा-तानी तो चलती रहेगी | ज़िन्दगी की कलम पर नहीं है अब ऐतबार मुझे – 2 क्योंकि मिटा चुकी है लिख-लिख कर ज़िन्दगी कई बार मुझे मिटा चुकी है वो ज़िन्दगी की कलम कई

डोर है ज़िन्दगी… खींचा-तानी तो चलती रहेंगी…. Read More »

ये करवटे भी यूँ बेवजह नहीं

सुनों ! ये करवटें भी यूँ बेवजह नहीं हैं… कुछ तो है दिल में…. जो अब तक कहा नहीं है… ये करवटें भी यूँ बेवजह नहीं हैं | फिर उनसे दूर जाने के बाद… पल पल मन ही मन उनसे ही बाते करना भी बेवजह नहीं है | कभी लगता सब कुछ बेवजह ही है…

ये करवटे भी यूँ बेवजह नहीं Read More »

अब क्या करना…

कोई ग़ज़ल सुना कर क्या करना, यूँ बात बढ़ा कर क्या करना | चाहे अब कुछ हुआ भी हो, तो अब दुनिया को बता कर क्या करना, तुम साथ निभाओ चाहत से, कोई रस्म निभा कर क्या करना | तुम खफ़ा भी अच्छे लगते हो, फिर तुमको मना कर क्या करना… उलझन भरी इस ज़िन्दगी

अब क्या करना… Read More »

क्या लिखूं : तुम्हें लिखूं या न लिखूं

क्या लिखूं तुम्हें ??? मैं समझ नहीं पा रही हूँ क्या लिखूं ??? आपकी वो अच्छी बातें लिखूं या वो बेवजह गुस्सा करना ??? या जो कहना है वो लिखूं ??? फिर सोचती हूँ …. लिखूं या न लिखूं | कभी-कभी लगता है… न जान पाए आप मुझे या शायद मैं तुम्हें… अब तुम ही

क्या लिखूं : तुम्हें लिखूं या न लिखूं Read More »

“अपनी संस्कृति का ही पालन करो ना, मुझसे जरा भी मत डरो ना” – करोना

राम युग में दूध मिलाऔर कृष्ण युग में घीकोरोना युग में काढा मिलेडिस्टेंस बना कर पी जब दुनिया लेके बैठी हैबड़े-बड़े परमाणुपर ठोक गया सबको एकछोटा सा विषाणु कल रात सपने मेंआया कोरोनाउसे देख जो मैं डरी और शुरू किया रोनातो, मुस्कुरा  केवह बोला मुझसे मत डरो नाकितनी अच्छी है वो तुम्हारी संस्कृति न चूमते, न गले

“अपनी संस्कृति का ही पालन करो ना, मुझसे जरा भी मत डरो ना” – करोना Read More »

ये ग़म क्या दिल की आदत है? नहीं तो

एक पुरानी कविता को कुछ अलग शब्दों में दर्शाने की छोटी सी एक कोशिश :- ये ग़म क्या दिल की आदत है? नहीं तोकिसी से कुछ शिकायत है? नहीं तो है वो इक ख़्वाब-ए-बे ताबीर तो इसकोभुला देने की नीयत है? नहीं तो किसी के बिन, किसी की याद के बिनजीने की हिम्मत है? नहीं

ये ग़म क्या दिल की आदत है? नहीं तो Read More »