तो क्या हुआ !
एक बार फिर से… दिल ही तो “दुखा” है |
तो क्या हुआ
चाहे अब कोई अपना ही रूठा है |
तो क्या हुआ
रती भर हैं खुशियाँ और पहाड़ जैसे हैं ग़म |
तो क्या हुआ
आगे तो मुझे चलना ही है |
तो क्या हुआ अब ये कदम नहीं बढ़ते
तो क्या हुआ |
अब ये कदम बढ़ाने ही हैं मुझे तो क्या हुआ आगे चाहे पत्थर हों गड़गड़ाते |
तो क्या हुआ
दिल से कोई पूछता ही नहीं तुम कैसे हो |
तो क्या हुआ
अगर कोई पूछ भी ले, तो बताने को मन नहीं करता |
तो क्या हुआ
आज नहीं बताएंगे और शायद कल भी नहीं बताएंगे |
तो क्या हुआ
लेकिन आईने में एक दिन खुद को वो भिन्नी मुस्कान के साथ तो कभी कहेंगे ही – “तो क्या हुआ” |
तो क्या हुआ
आज थोड़े से अँधेरे में हूँ पर ज़िंदा हूँ , वो ही काफ़ी है
मैं अकेली नहीं ख़ुद के साथ हूँ, लगता है यही समझदारी साफ़ी है |
ज़िन्दगी में बहुत सारे कड़वे लम्हें तो मिले है और इंशाल्लाह मिलते रहे
पर साथ में मिली सीख एक मीठी टॉफ़ी है |
बस इस वक्त को संभल जाऊं….
बस…. इस वक़्त को संभल जाओ वही काफी है |
Always Remember... हमेशा याद रखना हर कोई अपने लिए worth(कीमती) है, व्यर्थ (फज़ूल) नहीं !