Nisha Kaushik

जल बैठ कर वह भी लोटे से क्यों पीना चाहिए ?

जल बैठ कर वह भी लोटे में पीना चाहिए ।गिलास तो बहुत बाद शामिल हुआ है हमारी रसोई मे दूध खड़े होके पीना चाहिए ।  जानिए लोटा और गिलास के पानी में अंतर  🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔹🔸🔸🔹🔸🔸  कभी भी गिलास में पानी ना पियें, भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही

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पशु इस देश की रीढ़ हैं, वो हमसे भी बड़े भारतवासी हैं बेशक उनके पास कोई आधारकार्ड या पासपोर्ट न हो।

हरियाणा काऊ पहाड़ी गाय, गिर, साहीवाल, राठी, कांकरेज, नागौरी, कितने नाम लूं, इनकी तो शक्लो सूरत पर ही इलाके की पहचान दर्ज हैं। लेकिन आज ये गौवंश खतरे में हैं। देश की इस रीढ़ पर पहला हमला उस दिन हुआ था जब भट्ठी के बालकों ने गाय के दूध का रेट फैट के आधार पर

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आज मुझे एक बात समझ में आई के इंसानियत स्वभाव के दो गुण हैं

आज मुझे एक बात समझ में आई के इंसानियत स्वभाव के दो गुण हैं : विखंडन और संलयन(Fragmentation/Fission and Fusion) व्यक्ति कभी तो विखंडन के मूड में होता है और कभी संलयन के मूड में होता है। विज्ञान इस बात का गवाह है कि नाभकीय विखंडन(Nuclear Fission) से कहीं अधिक ऊर्जा नाभकीय संलयन(Nuclear Fusion) में

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सोनाली बेंद्रे को कैंसर हो गया है !!!

आप क्या समझते हैं के सोनाली बेंद्रे का लाइफ स्टाइल खाना पीना कैसा होगा, आप और मैं कल्पना भी नही कर सकते। फिर भी कैंसर कैसे हो गया ? कारण एक ही है जिसपर आज देश मे कोई बात नही करना चाह रहा वो है खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट। आज देश की सबसे

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“नफ़रत करना” हमारे देशवसियों का सबसे प्रिय शग़ल है, शौक़ है, प्रियतम वस्तु है, जो हर चीज से प्यारी है और हर चीज पर भारी है।

True Story : मैं अक्सर अपने काम धाम के सिलसिले में देश समाज मे घूमता रहता हूँ, मैं यह देखता हूँ के अहीर, जाट, गुज्जर, पंजाबी, ब्राह्मण, नाई, मोची, खाती, तेली मतलब ABC से XYZ तक सब आपस मे एक दूसरे से नफ़रत करने में असीम सुख की अनुभूति प्राप्त करते हैं। हालांकि सब आपस

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मेरी समझ मे बेहतर जीवन की रेसिपी आ ही गयी

बहुत वर्षों पहले प्रोफेसर Anil Gupta जी ने एक बात कही थी के यदि आप financial capital कमाना चाहते हैं तो आपको पहले social capital कमानी चाहिये। आज एक ऐसे ही एंटरप्राइज से वास्ता पड़ा जिसके आगे तो दुकान है लेकिन पीछे से पियाऊ है। एक छोटी गुड़िया कोई 10 या 12 साल की इस

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समझ समझ कर समझ को समझों यही समझना भी एक समझ है, जो इस समझ को ना समझे मेरी समझ में वो नासमझ है।

वर्ण व्यवस्था छुआछूत और सनातन संस्कृति   साथियों अक्सर हम सभी माइक्रो क्लाइमेटस में जीते हैं जहां प्रीलोडेड और कुक्ड इन्फॉर्मेशन का काफी बड़ा फ्री डेटाबेस उपलब्ध रहता है। हम आसानी से उप्लब्ध इस डेटाबेस के सहारे अपने ओपिनियन और विचारधारा का निर्माण कर लेते हैं। सोशल मीडिया ने आपके – हमारे डेटाबेस में एक

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