Nisha Kaushik

ये करवटे भी यूँ बेवजह नहीं

सुनों ! ये करवटें भी यूँ बेवजह नहीं हैं… कुछ तो है दिल में…. जो अब तक कहा नहीं है… ये करवटें भी यूँ बेवजह नहीं हैं | फिर उनसे दूर जाने के बाद… पल पल मन ही मन उनसे ही बाते करना भी बेवजह नहीं है | कभी लगता सब कुछ बेवजह ही है…

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अब क्या करना…

कोई ग़ज़ल सुना कर क्या करना, यूँ बात बढ़ा कर क्या करना | चाहे अब कुछ हुआ भी हो, तो अब दुनिया को बता कर क्या करना, तुम साथ निभाओ चाहत से, कोई रस्म निभा कर क्या करना | तुम खफ़ा भी अच्छे लगते हो, फिर तुमको मना कर क्या करना… उलझन भरी इस ज़िन्दगी

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क्या लिखूं : तुम्हें लिखूं या न लिखूं

क्या लिखूं तुम्हें ??? मैं समझ नहीं पा रही हूँ क्या लिखूं ??? आपकी वो अच्छी बातें लिखूं या वो बेवजह गुस्सा करना ??? या जो कहना है वो लिखूं ??? फिर सोचती हूँ …. लिखूं या न लिखूं | कभी-कभी लगता है… न जान पाए आप मुझे या शायद मैं तुम्हें… अब तुम ही

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